नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में केसों के बंटवारे और बेंच तय करने को लेकर दायर की गई दूसरी याचिका पर जस्टिस जे चेलामेश्वर ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। इसे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दायर किया था। जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा- मैं नहीं चाहते कि मेरा आदेश 24 घंटे में पलट दिया जाए। बता दें कि बुधवार को चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने भी ऐसी ही एक याचिका खारिज की थी। बेंच ने कहा था कि चीफ जस्टिस संवैधानिक रूप से सर्वोपरि हैं उनके फैसले पर अविश्वास नहीं किया जा सकता।
'देश नहीं चाहता तो मैं क्या कर सकता हूं'
- प्रशांत भूषण ने जस्टिस चेलामेश्वर के सामने चीफ जस्टिस द्वारा काम के आवंटन अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की मांग की।
- इस पर जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा, "मैं नहीं चाहता कि मेरा आदेश 24 घंटे में पलट दिया जाए। मेरे रिटायरमेंट को कुछ दिन बचे हैं। जब देश नहीं चाहता तो मैं क्या कर सकता हूं। मेरे लिए कहा जा रहा है कि मैं किसी खास ऑफिस (पद) के लिए ये सब कर रहा हूं। अगर किसी को चिंता नहीं है तो मैं भी चिंता नहीं करूंगा। देश के इतिहास को देखते हुए, जाहिरतौर पर मैं मामले को नहीं सुनूंगा।
प्रशांत भूषण याचिका लेकर चीफ जस्टिस के पास गए
- जस्टिस चेलामेश्वर के सुनवाई से इनकार के बाद प्रशांत भूषण याचिका लेकर चीफ जस्टिस के पास पहुंचे। उनसे सुनवाई की गुहार लगाई। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वे इसे देखेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- सीजेआई के कामों को लेकर अविश्वास नहीं किया जा सकता
- जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बेंच की ओर से लिखे फैसले में कहा, "सीजेआई सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारी हैं। वह खुद ही एक संस्था हैं। संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही चलाने के लिए सीजेआई के कामों को लेकर अविश्वास नहीं किया जा सकता।"
मुकदमों का आवंटन चीफ जस्टिस का विशेषाधिकार
- बेंच ने कहा, "एक जज के तौर पर चीफ जस्टिस सभी में प्रथम होता है। अपने दूसरे कामों के निर्वहन में चीफ जस्टिस को विशेष स्थान मिला होता है। आर्टिकल 146 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की पोजिशन संस्थान के मुखिया के तौर पर बताई गई है। संस्थान के नजरिए से चीफ जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट का संचालन का दायित्व होता है। केसों के निर्धारण और पीठों की व्यवस्था उसका विशेष अधिकार होता है।"
जनवरी में 4 जजों ने की थी प्रेस कॉन्फ्रेंस
- 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद दूसरे नंबर के सीनियर जज जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ शामिल हुए थे।
- प्रेस कॉन्फ्रेंस में जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए थे। कहा था- "लोकतंत्र दांव पर है। ठीक नहीं किया तो सब खत्म हो जाएगा।"
- उन्होंने चीफ जस्टिस को दो महीने पहले लिखा 7 पेज का पत्र भी जारी किया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि चीफ जस्टिस पसंद की बेंचों में केस भेजते हैं।
- शीर्ष अदालत के इतिहास में यह पहला मौका था जब इसके जजों ने मीडिया के सामने सुप्रीम कोर्ट के सिस्टम पर सवाल उठाए थे।
- जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद अशोक पांडे ने पीआईएल दाखिल की थी।
दो साल पहले कॉलेजियम को लेकर शुरू हुआ था विवाद
- जस्टिस चेलमेश्वर पहले भी कई बार न्यायपालिका में होने वाले फैसलों व कार्यों पर नाराजगी जता चुके हैं। इसकी शुरुआत करीब दो साल पहले हुई थी।
- 2015 में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए एनजेएसी एक्ट 2014 को खत्म कर दिया था और जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम को बहाल रखा था। फैसला चार-एक के बहुमत से हुआ था। चेलमेश्वर ने एनजेएसी के पक्ष में निर्णय दिया था।
- दीपक मिश्रा के चीफ जस्टिस बनने के बाद चेलमेश्वर ने कॉलेजियम का बहिष्कार शुरू कर दिया। मेडिकल घोटाला मामले में जस्टिस चेलमेश्वर ने की थी सुनवाई, जिसे चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने पलट दिया था। दो महीने पहले उन्होंने कई मामलों को लेकर चीफ जस्टिस को पत्र लिखा था।