बेंगलुरु: कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार की कैबिनेट ने सोमवार को लिंगायत को एक अलग धर्म का दर्जा देते हुए केंद्र सरकार से कैबिनेट के इस प्रस्ताव को क़ानूनी दर्जा देने की मांग की है. हालांकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के लिए ये फैसला इतना आसान भी नहीं था. कैबिनेट की बैठक में काफी नोंकझोंक हुई क्योंकि चार लिंगायत मंत्रियों में से दो इसके पक्ष में थे तो दो इसके विरोध में. कुछ ऐसा ही विरोध और समर्थन सड़कों पर भी दिखा. जहां बेंगलुरु में लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा मिलने की खुशी में जश्न मनाया गया वहीं गुलबर्गा में इस फैसले का समर्थन और विरोध कर रहे लोग आपस में भिड़ गए. पुलिस को इन्हें क़ाबू में लाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी.
कैबिनेट की बैठक के बाद मेडिकल एजुकेशन मंत्री और लिंगायत नेता एमबी पाटिल ने कहा, कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने ऐतिहासिक फैसला लिया है. कैबिनेट ने लिंगायतों और वीरशेवाये के उन लोगों को अलग धर्म का दर्जा देने का फैसला किया है जो लॉर्ड बसवा के मानने वाले हैं. हम कैबिनेट के इस फैसले को केंद्र को मंजूरी के लिए भेज रहे हैं."
दरअसल कर्नाटक में लिंगयतों की संख्या तक़रीबन 19 फीसदी है और लगभग तीन दशकों से बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं. लिंगायत नेता वीरेंद्र पाटिल को एयरपोर्ट पर बुलाकर राजीव गांधी ने 1990 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का आदेश दिया जिसे लिंगायतों के बीच उनके अपमान के तौर पर वीरेन्द्र पाटिल ने प्रचारित किया. और तभी से कांग्रेस की पकड़ लिंगायतों पर कमज़ोर पड़ी और बीजेपी के साथ तक़रीबन 19 फीसदी वोट बैंक वाला लिंगायत समाज जुड़ गया.
कर्नाटक सरकार के लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने के फैसले से नाराज़ बीजेपी के राज्य प्रवक्ता एस प्रकाश ने कहा कि "मुख्यमंत्री सिद्धारमैया काफी दिनों से लिंगायत समाज को बांटने में जुटे थे. अब केंद्र को फैसला लेना है लेकिन मैं इतना ज़रूर कहूंगा कि इस चाल से सिद्धारमैया को फायदा नहीं होगा."